आय ए बल्लिग़ के बारे में शिया नज़िरया
  • शीर्षक: आय ए बल्लिग़ के बारे में शिया नज़िरया
  • स्रोत:
  • रिलीज की तारीख: 13:14:18 22-9-1404




शिया इस बात पर अक़ीदा रखते हैं कि आय ए बल्लिग़ हज़रत अली (अ) की विलायत से मुतअल्लिक़ है और (आयत) का मिसदाक़ हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) की विलायत है क्योकि:

अव्वल. ख़ुदा वंदे आलम ने इस सिलसिले में इतना ज़्यादा ऐहतेमाम किया कि अगर इस हुक्म को न पहुचाया तो गोया पैग़म्बर ने अपनी रिसालत ही नही पहुचाई और यह अम्र हज़रत अली (अ) की ज़आमत, इमामत और जानशीनी के अलावा कुछ नही था और यह ओहदा नबी ए अकरम (स) की तमाम ज़िम्मेदारियों का हामिल है सिवाए वहयी के।

दूसरे. मज़कूरा आयत से यह नतीजा हासिल होता है कि रसूले ख़ुदा के लिये इस अम्र का पहुचाना दुशवार था क्यो कि इस चीज़ का ख़ौफ़ पाया जाता था कि बाज़ लोग इस हुक्म की मुख़ालेफ़त करेंगें और इख़्तेलाफ़ व तफ़रेक़ा बाज़ी के नतीजे में आँ हज़रत (स) की 23 साल की ज़हमतों पर पानी फिर जायेगा और यह मतलब (तारीख़ का वरक़ गरदानी के बाद मालूम हो जाता है कि) हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) की विलायत के ऐलान के अलावा और कुछ नही था।

क़ुरआनी आयात की मुख़्तसर तहक़ीक़ के बाद मालूम हो जाता है कि रसूले अकरम (स) नबूवत पर अहद व पैमान रखते थे और ख़ुदा वंदे आलम की तरफ़ से सब्र व इस्तेक़ामत पर मामूर थे। इसी वजह से आँ हज़रत (स) ने दीने ख़ुदा की तबलीग़ और पैग़ामे इलाही को पहुचाने में कोताही नही की है और ना माक़ूल दरख़्वास्तों और मुख़्तलिफ़ बहाने बाज़ियों के सामने सरे तसलीम के ख़म नही किया। पैग़म्बरे अकरम (स) ने पैग़ामाते इलाही को पहुचाने में ज़रा भी कोताही नही की। यहाँ तक कि जिन मवारिद में आँ हज़रत (स) के लिये सख्ती और दुशवारियाँ थी जैसे ज़ौज ए ज़ैद जै़नब का वाक़ेया और मोमिनीन से हया का मसला या मज़कूरा आयत को पहुचाने के मसला, उन तमाम मसायल में आँ हज़रत (स) को अपने लिये कोई ख़ौफ़ नही था।

सूरए अहज़ाब आयत 7

सूरए हूद आयत 12

सूरए युनुस आयत 15

सूरए अहज़ाब आयत 37

सूरए अहज़ाब आयत 53


लिहाज़ा पैग़म्बरे अकरम (स) की परेशानी को दूसरी जगह तलाळ करना चाहिये और वह इस पैग़ाम के मुक़ाबिल मुनाफ़ेक़ीन के झुटलाने के ख़तरनाक नतायज और आँ हज़रत (स) के बाज़ असहाब के अक्सुल अमल के मनफ़ी असरात थे जिनकी वजह से उनके आमाल ज़ब्त हो गये और मुनाफ़ेक़ीन के निफ़ाक़ व क़ुफ्र में इज़ाफ़ा हो जाता और दूसरी तरफ़ उनकी तकज़ीब व क़ुफ्र की वजह से रिसालत को आगे बढ़ना यहाँ तक कि अस्ले रिसालत नाकाम रह जाती और दीन ख़त्म हो जाता।

तीसरे. आय ए इकमाल की शाने नुज़ूल के बारे में शिया और सुन्नी तरीक़ों से सहीहुस सनद रिवायात बयान हुई हैं कि यह आयत हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) के बारे में नाज़िल हुई हैं।

नतीजा यह हुआ कि (...) से हज़रत अली (अ) की विलायत मुराद है जिसको पहुचाने का हुक्म आँ हज़रत (स) को दिया गया था।